हेलो दोस्तों, आप सब को Indian xxx stories वेबसाइट पर स्वागत है, चलिए सुरु करते है ाजी की ऑडियो सेक्स कहानी. मेरे पति एक सफ़ल व्यापारी हैं। अपने पापा के कारोबार को इन्होंने बहुत आगे बढ़ा दिया है। घर पर बस हम तीन व्यक्ति ही थे, मेरी सास, मेरे पति और और मैं स्वयं। घर उन्होंने बहुत बड़ा बना लिया है।
पुराने मुहल्ले में हमारा मकान बिल्कुल ही वैसे ही लगता था जैसे कि टाट में मखमल का पैबन्द ! हमारे मकान भी आपस में एक दूसरे से मिले हुए हैं।
दिन भर मैं घर पर अकेली रहती थी। यह तो आम बात है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। औरों की भांति मैं भी अपने कमरे में अधिकतर इन्टर्नेट पर ब्ल्यू फ़िल्में देखा करती थी। कभी मन होता तो अपने पति से कह कर सीडी भी मंगा लेती थी।
पर दिन भर वासना के नशे में रहने के बाद चुदवाती अपने पति से ही थी।
वासना में तड़पता मेरा जवान शरीर पति से नुचवा कर और साधारण से लण्ड से चुदवा कर मैं शान्त हो जाती थी।
पर कब तक… !!
मेरे पति भी इस रोज-रोज की चोदा-चोदी से परेशान हो गए थे… या शायद उनका काम बढ़ गया था, वो रात को भी काम में रहते थे। मैं रात को चुदाई ना होने से तड़प सी जाती थी और फिर बिस्तर पर लोट लगा कर, अंगुली चूत में घुसा कर किसी तरह से अपने आप को बहला लेती थी।
मेरी ऐशो-आराम की जिन्दगी से मैं कुछ मोटी भी हो गई थी। चुदाई कम होने के कारण अब मेरी निगाहें घर से बाहर भी उठने लगी थी।
मेरा पहला शिकार बना मोनू !!!
बस वही एक था जो मुझे बड़े प्यार से छुप-छुप के देखता रहता था और डर के मारे मुझे दीदी कहता था।
मुझे बरसात में नहाना बहुत अच्छा लगता है। जब भी बरसात होती तो मैं अपनी पेन्टी उतार कर और ब्रा एक तरफ़ फ़ेंक कर छत पर नहाने चली जाती थी।
सामने पड़ोस के घर में ऊपर वाला कमरा बन्द ही रहता था। वहाँ मोनू नाम का एक जवान लड़का पढ़ाई करता था। शाम को अक्सर वो मुझसे बात भी करता था।
चूंकि मेरे स्तन भारी थे और बड़े बड़े भी थे सो उसकी नजर अधिकतर मेरे स्तनों पर ही टिकी रहती थी। मेरे चूतड़ जो अब कुछ भारी से हो चुके थे और गदराए हुए भी थे, वो भी उसे शायद बहुत भाते थे। वो बड़ी प्यासी निगाहों से मेरे अंगों को निहारता रहता था।
मैं भी यदा-कदा उसे देख कर मुस्करा देती थी।
मैं जब भी सुखाए हुए कपड़े ऊपर तार से समेटने आती तो वो किसी ना किसी बहाने मुझे रोक ही लेता था। मैं मन ही मन सब समझती थी कि उसके मन में क्या चल रहा है?
मैंने खिड़की से झांक कर देखा, आसमान पर काले काले बादल उमड़ रहे थे। मेरे मन का मयूर नाच उठा यानि बरसात होने वाली थी। मैं तुरन्त अपनी पेण्टी और ब्रा उतार कर नहाने को तैयार हो गई। तभी ख्याल आया कि कपड़े तो ऊपर छत पर सूख रहे हैं। मैं जल्दी से छत पर गई और कपड़े समेटने लगी।
तभी मोनू ने आवाज दी- दीदी, बरसात आने वाली है…
‘हाँ, जोर की आयेगी देखना, नहायेगा क्या?’ मैंने उसे हंस कर कहा।
‘नहीं, दीदी, बरसात में डर लगता है…’
‘अरे पानी से क्या डरना, मजा आयेगा.’ मैंने उसे देख कर उसे लालच दिया।
कुछ ही पलों में बूंदा-बांदी चालू हो गई, मैंने समेटे हुए कपड़े सीढ़ियों पर ही डाल दिए और फिर से बाहर आ गई।
मोटी मोटी बून्दें गिर रही थी। हवा मेरे पेटीकोट में घुस कर मुझे रोमांचित कर रही थी। मेरी चूत को इस हवा का मधुर सा अहसास सा हो रहा था।
लो कट ब्लाऊज में मेरे थोड़े से बाहर झांकते हुए स्तनों पर बूंदें गिर कर मुझे मदहोश बनाने में लगी थी। जैसे पानी नहीं अंगारे गिर रहे हो। बरसात तेज होने लगी थी।
मैं बाहर पड़े एक स्टूल पर नहाने बैठ गई। मैं लगभग पूरी भीग चुकी थी और हाथों से चेहरे का पानी बार बार हटा रही थी।
मोनू मंत्रमुग्ध सा मुझे आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर देख रहा था। मेरे उभरे हुए कट गीले कपड़ों में से शरीर के साथ नजारा मार रहे थे।
मोनू का पजामा भी उसके भीगे हुए शरीर से चिपक गया था और उसके लटके हुए और कुछ उठे हुए लण्ड की आकृति स्पष्ट सी दिखाई दे रही थी। मेरी दृष्टि ज्यों ही मोनू पर गई, मैं हंस पड़ी।
‘तू तो पूरा भीग गया है रे, देख तेरा पजामा कैसे चिपक गया है?’ मैं मोनू की ओर बढ़ गई।
‘दीदी, वो… वो… अपके कपड़े भी तो कैसे चिपके हुए हैं…’ मोनू भी झिझकते हुए बोला।
मुझे एकदम एहसास हुआ कि मेरे कपड़े भी तो… मेरी नजरें जैसे ही अपने बदन पर गई, मैं तो बोखला गई, मेरा तो एक एक अंग साफ़ ही दृष्टिगोचर हो रहा था।
सफ़ेद ब्लाऊज और सफ़ेद पेटीकोट तो जैसे बिल्कुल पारदर्शी हो गए थे।
मुझे लगा कि मैं नंगी खड़ी हूँ।
‘मोनू, इधर मत देख, मुझे तो बहुत शरम आ रही है।’ मैंने बगलें झांकते हुए कहा।
उसने अपनी कमीज उतारी और कूद कर मेरी छत पर आ गया, अपनी शर्ट मेरी छाती पर डाल दी- दीदी, छुपा लो, वर्ना किसी की नजर लग जायेगी।
मेरी नजरें तो शरम से झुकी जा रही थी। पीछे घूमने में भी डर लग रहा था कि मेरे सुडौल चूतड़ भी उसे दिख जायेंगे।
‘तुम तो अपनी अपनी आँखें बन्द करो ना…!!’ मुझे अपनी हालत पर बहुत लज्जा आने लगी थी। पर मोनू तो मुझे अब भी मेरे एक एक अंग को गहराई से देख रहा था।
‘कोई फ़ायदा नहीं है दीदी, ये तो सब मेरी आँखों में और मन में बस गया है।’ उसका वासनायुक्त स्वर जैसे दूर से आता हुआ सुनाई दिया।
अचानक मेरी नजर उसके पजामे पर पड़ी, उसका लण्ड उठान पर था!
मेरे भी मन का शैतान जाग उठा। उसकी वासना से भरी नजरें मेरे दिल में भी उफ़ान पैदा करने लगी। मैंने अपनी बड़ी बड़ी गुलाबी नजरें उसके चेहरे पर गड़ा दी। उसके चेहरे पर शरारत के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे।
मेरा यूँ देखना उसे घायल कर गया। मेरा दिल मचल उठा, मुझे लगा कि मेरा जादू मोनू पर अनजाने में चल गया है।
मैंने शरारत से एक जलवा और बिखेरा- लो ये अपनी कमीज, जब देख ही लिया है तो अब क्या है, मैं जाती हूँ।
मेरे सुन्दर पृष्ट उभारों को उसकी नजर ने देख ही लिया।
मैं ज्योंही मुड़ी, मोनू के मुख से एक आह निकल गई।
मैंने भी शरारत से मुड़ कर उसे देखा और हंस दी। उसकी नजरें मेरे चूतड़ों को बड़ी ही बेताबी से घूर रही थी। उसका लण्ड कड़े डन्डे की भांति तन गया था।
उसने मुझे खुद के लण्ड की तरफ़ देखता पाया तो उसने शरारतवश अपने लण्ड को हाथ से मसल दिया।
मुझे और जोर से हंसी आ गई। मेरे चेहरे पर हंसी देख कर शायद उसने सोचा होगा कि हंसी तो फ़ंसी… उसने अपने हाथ मेरी ओर बढ़ा दिये।
बरसात और तेज हो चुकी थी। मैं जैसे शावर के नीचे खड़ी होकर नहा रही हूँ ऐसा लग रहा था।
उसने अपना हाथ ज्यों ही मेरी तरफ़ बढाया, मैंने उसे रोक दिया- अरे यह क्या कर रहे हो… हाथ दूर रखो… क्या इरादा है?’ मैं फिर से जान कर खिलखिला उठी।
मैं मुड़ कर दो कदम ही गई थी कि उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच लिया।
‘नहीं मोनू नहीं…’ उसके मर्द वाले हाथों की कसावट से सिहर उठी।
‘दीदी, देखो ना कैसी बरसात हो रही है… ऐसे में…’ उसके कठोर लण्ड के चुभन का अहसास मेरे नितम्बों पर होने लगा था। उसके हाथ मेरे पेट पर आ गये और मेरे छोटे से ब्लाऊज के इर्द गिर्द सहलाने लगे।
मुझे जैसे तेज वासनायुक्त कंपन होने लगी।
तभी उसके तने हुआ लण्ड ने मेरी पिछाड़ी पर दस्तक दी। मैं मचल कर अपने आप को इस तरह छुड़ाने लगी कि उसके मर्दाने लण्ड की रगड़ मेरे चूतड़ों पर अच्छे से हो जाये।
मैं उससे छूट कर सामने की दीवार से चिपक कर उल्टी खड़ी हो गई, शायद इस इन्तज़ार में कि मोनू मेरी पीठ से अभी आकर चिपक जायेगा और अपने लण्ड को मेरी चूतड़ की दरार में दबा कर मुझे स्वर्ग में पहुँचा देगा!
पर नहीं…! वो मेरे पास आया और मेरे चूतड़ों को निहारा और एक ठण्डी आह भरते हुए अपने दोनों हाथों से मेरे नंगे से चूतड़ो की गोलाइयों को अपने हाथो में भर लिया।
मेरे दोनों नरम चूतड़ दब गये, मोनू की आहें भी निकलने लगी, मेरे मुख से भी सिसकारी निकल गई। वो चूतड़ों को जोर जोर से दबाता चला गया। मेरे शरीर में एक मीठी सी गुदगुदी भरने लगी।
‘मोनू, बस कर ना, कोई देख लेगा…’ मेरी सांसें तेज होने लगी थी।
‘दीदी, सीधे से कहो ना, छिप कर करें !’ उसके शरारती स्वर ने मुझे लजा ही दिया।
‘धत्त, बहुत शरीर हो… अपनी दीदी के साथ भी ऐसा कोई करता है भला?’ लजाते हुए मैंने कहा।
‘कौन सी वास्तव में तुम मेरी दीदी हो, तुम तो एटम-बम्ब हो’ मोनू ने अपने दिल की बात निकाली।
मैंने उसे धीरे से दूर कर दिया। दीवार के पास पानी भी कम गिर रहा था। मैं फिर से बरसात में आ गई। तेज बरसात में आस पास के मकान भी नहीं नजर आ रहे थे। मेरी चूत में मोनू ने आग लगा दी थी।
अचानक मोनू ने मुझे कस कर अपनी ओर खींच लिया और अपना चेहरा मेरे नजदीक ले आया। मैं निश्चल सी हो गई और उसकी आँखों में झांकने लगी। कुछ झुकी हुई, कुछ लजाती आंखें उसे मदहोश कर रही थी। उसके होंठ मेरे लरजते हुए भीगे होठों से छू गये, कोमल पत्तियों से मेरे होठ थरथरा गये, कांपते होंठ आपस में जुड़ गए।
मैंने अपने आप को मोनू के हवाले कर दिया। मेरे भीगे हुए स्तनों पर उसके हाथ आ गए और मेरे मुख से एक सिसकारी निकल पड़ी। मैं शरम के मारे सिमट सी गई।
मेरे सीने को उसने दबा दबा कर मसलना जारी रखा। मैं शरम के मारे उससे छुड़ा कर नीचे बैठने का प्रयास करने लगी।
जैसे ही मैं कुछ नीचे बैठ सी गई कि मोनू का कड़कता लण्ड मेरे मुख से आ लगा। आह, कैसा प्यारा सा भीगा हुआ लण्ड, एकदम कड़क, सीधा तना हुआ, मेरे मुख में जाने को तैयार था। पर मैंने शरम से अपनी आँखें बंद कर ली… और… और नीचे झुक गई।
मोनू ने मेरे कंधे पकड़ कर मुझे सीधे नीचे चिकनी जमीन पर लेटा दिया और अपने पजामे को नीचे खिसका कर अपना तन्नाया हुआ लण्ड मेरे मुख पर दबा दिया।
मैंने थोड़ा सा नखरा दिखाया और अपना मुख खोल दिया, बरसात के पानी से भीगी हुई उसकी लाल रसीली टोपी को मैंने एक बार जीभ निकाल कर चाट लिया।
उसने अपने हाथ से लण्ड पकड़ा और दो तीन बार उसे मेरे चेहरे पर मारा और लाल टोपी को मेरे मुख में घुसेड़ दिया।
उसका गरम जलता हुआ लण्ड मेरे मुख में प्रवेश कर गया।
पहले तो मुझे उसका भीगा हुआ लण्ड बड़ा रसदार लगा फिर उसका लाल सुपारा मैंने अपने मुख में दबा लिया। उसके गोल लाल छल्ले को मैंने जीभ और होंठों से दबा दबा कर चूसा।
हाँ जी, लण्ड चूसने में तो मैं अभ्यस्त थी, गाण्ड मराने के पूर्व मैं अपने पति के लण्ड को चूस चूस कर इतना कठोर कर देती थी कि वो लोहे की छड़ की भांति कड़ा हो जाता था।
अब बरसात के साथ साथ तेज हवा भी चल निकली थी। इन हवाओं से मुझे बार बार तीखी ठण्डी सी लगने लगी थी। शायद उसे भी ठण्ड के मारे कंपकंपी सी छूट रही थी।
‘दीदी, चलो अन्दर चलें… ‘ वो जल्दी से खड़ा हो गया और मेरा भारी बदन उसने अपनी बाहों में उठा लिया। उसने जवान वासना भरे शरीर में अभी गजब की ताकत आ गई थी।
‘अरे रे… गिरायेगा क्या… चल उतार मुझे…’ मैं घबरा सी गई।
उसने धीरे से मुझे उतार दिया और दीवार फ़ांद गया। मैंने भी उसके पीछे पीछे दीवार कूद गई। मोनू ने अपना कमरा जल्दी से खोल दिया। हम दोनों उसमे समा गये।
मैंने अपने आप को देखा फिर मोनू को देखा और मेरी हंसी फ़ूट पड़ी। हम दोनों का क्या हाल हो रहा था। उसका खड़ा हुआ पजामे में से निकला हुआ लण्ड, मेरा अध खुला ब्लाऊज… पेटीकोट आधा उतरा हुआ… मोनू तो मुझे देख देख कर बेहाल हो रहा था।
मैं अपना बदन छिपाने का भरकस प्रयत्न कर रही थी, पर क्या क्या छुपाती।
उसने मेरे नीचे सरके हुए गीले पेटीकोट को नीचे खींच दिया और मेरी पीठ से चिपक गया। मेरे पृष्ट भाग के दोनों गोलों के मध्य दरार में उसने अपना लण्ड जैसे ठूंस सा दिया। यही तो मैं भी चाहती थी… उसका मदमस्त लण्ड मेरी गाण्ड के छेद पर जम कर दबाव डाल रहा था।
मैं अपनी गाण्ड के छेद को ढीला छोड़ने की कोशिश करने लगी और उसके हेयर ऑयल की शीशी उसे थमा दी। उसे समझ में आ गया और मेरी गीली गाण्ड को चीर कर उसमे वो तेल भर दिया। अब उसने दुबारा अपना लाल टोपा मेरे चूतड़ों की दरार में घुसा डाला।
‘मोनू… हाय रे दूर हट… मुझे मार डालेगा क्या?’ मैंने उसका लण्ड अपनी गाण्ड में सेट करते हुए कहा।
‘बस दीदी, मुझे मार लेने दे तेरी… साली ने बहुत तड़पाया है मुझे !’
उसने मुझे अपने बिस्तर पर गिरा दिया और मेरी पीठ के ऊपर चढ़ गया। उसका लण्ड गाण्ड के काले भूरे छेद पर जम कर जोर लगाने लगा। मैंने अपनी गाण्ड ढीली कर दी और लण्ड को घुसने दिया।
‘किसने तड़पाया है तुझे…’ मैंने उसे छेड़ा।
‘तेरी इस प्यारी सी, गोल गोल सी गाण्ड ने… अब जी भर कर इसे चोद लेने दे।’
उसका लण्ड मेरी गाण्ड में घुस गया और अन्दर घुसता ही चला गया। मुझे उसके लण्ड का मजा आने लगा। उसने अपना लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और एक जोर के धक्के से पूरा फ़िट कर दिया। मुझे दर्द सा हुआ, पर चिकना लण्ड खाने का मजा अधिक था।
‘साली को मचक मचक के चोदूंगा… गाण्ड फ़ाड़ डालूंगा… आह्ह… दीदी तू भी क्या चीज़ है… ‘ वो मेरी पीठ से चिपक कर लण्ड का पूरा जोर लगा रहा था। एक बार लण्ड गाण्ड में सेट हो गया फिर धीरे धीरे उसके धक्के चल पड़े।
उसके हाथों ने मेरी भारी सी चूचियों को थाम लिया। कभी वो मेरे कड़े चुचूक मसलता और कभी वो पूरे संतरों को दबा कर मसल देता था।
मेरी गाण्ड में भी मिठास सी भरने लगी थी। मैंने अपनी टांगे और फ़ैला ली थी। वो भरपूर जोर लगा कर मेरी गाण्ड चोदे जा रहा था। मुझे बहुत मजा आने लगा था। मुझे लगा कि कहीं मैं झड़ ना जाऊँ…
‘जरा धीरे कर ना… फ़ट जायेगी ना… बस बहुत मार ली… अब हट ऊपर से !’
‘दीदी, नहीं हटूंगा, इसकी तो मैं मां चोद दूंगा…’ उसकी आहें बढ़ती जा रही थी। तभी उसने लण्ड गाण्ड से बाहर निकाल लिया।
‘आह्ह्ह क्या हुआ मोनू… मार ना मेरी…’
‘तेरी भोसड़ी कौन चोदेगा फिर… चल सीधी हो जा।’ उसकी गालियाँ उसका उतावलापन दर्शाने लगी थी।
मैं जल्दी से सीधी हो गई, मुझे मेरी गाण्ड में लण्ड के बिना खाली खाली सा लगने लगा था।
मोनू की आँखें वासना से गुलाबी हो गई थी, मेरा भी हाल कुछ कुछ वैसा ही था।
मैंने अपने पांव पसार दिए और अपनी चूत बेशर्मी से खोल दी। मोनू मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरे शरीर पर अपना भार डाल दिया, मेरे अधरों से अपने अधर मिला दिये, नीचे लण्ड को मेरी चूत पर घुसाने का यत्न करने लगा।
मेरे स्तन उसकी छाती से भिंच गये। उसका तेलयुक्त लण्ड मेरी चूत के आस पास फ़िसल रहा था। मैं अपनी चूत भी उसके निशाने पर लाने यत्न कर रही थी। उसने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से सहलाया और मेरी आँखों में देखा।
‘दीदी, तू बहुत प्यारी है… अब तक तेरी चुदाई क्यूँ नहीं की…’
‘मोनू, हाय रे… तुझे देख कर मैं कितना तड़प जाती थी… तूने कभी कोई इशारा भी नहीं किया… और मेरा इशारा तो तू समझता ही नहीं…’
‘दीदी, ना रे…तूने कभी भी इशारा नहीं किया… वर्ना अब तक जाने कितनी बार चुदाई कर चुके होते।’
‘बुद्धू राम, ओह्ह्… अब चोद ले, आह घुसा ना… आईईईई मर गई… धीरे से… लग जायेगी।’
उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में उतर चुका था। शरीर में एक वासना भरी मीठी सी उत्तेजना भरने लगी। वो लण्ड पूरा घुसाने में लगा था और मैं अपनी चूत उठा कर उसे पूरा निगल लेना चाह रही थी।
हम दोनों के अधर फिर से मिल गए और इस जहाँ से दूर स्वर्ग में विचरण करने लगे। उसके शरीर का भार मुझे फ़ूलों जैसा लग रहा था। वो कमर अब तेजी से मेरी चूत पर पटक रहा था। उसकी गति के बराबर मेरी चूत भी उसका साथ दे रही थी। कैसा सुहाना सा मधुर आनन्द आ रहा था।
आनन्द के मारे मेरी आँखें बंद हो गई और टांगें पसारे जाने कितनी देर तक चुदती रही। उसके मर्दाने हाथ मेरे उभारों को बड़े प्यार से दबा रहे थे, सहला रहे थे, मेरे तन में वासना का मीठा मीठा जहर भर भर रहे थे। सारा शरीर मेरा उत्तेजना से भर चुका था। मेरा एक एक अंग मधुर टीस से लौकने लगा था। यूँ लग रहा था काश मुझे दस बारह मर्द आकर चोद जाएँ और मेरे इस जहर को उतार दें।
अब समय आ गया था मेरे चरम बिन्दु पर पहुंचने का। मेरे शरीर में ऐठन सी होने लगी थी। तेज मीठी सी गुदगुदी ने मुझे आत्मविभोर कर दिया था। सारा जहाँ मेरी चूत में सिमट रहा था। तभी जैसे मेरी बड़ी बड़ी आँखें उबल सी पड़ी… मैं अपने आपको सम्भाल नहीं पाई और जोर से स्खलित होने लगी। मेरा रज छूट गया था… मैं झड़ने लगी थी।
तभी मोनू भी एक सीत्कार के साथ झड़ने को हो गया- दीदी मैं तो गया…
उसकी उखड़ी हुई सांसें उसका हाल दर्शा रही थी।
‘बाहर निकाल अपना लण्ड… जल्दी कर ना…’ मैंने उसे अपनी ओर दबाते हुए कहा।
उसने ज्यों ही अपना लौड़ा बाहर निकाला… उसके लण्ड से एक तेज धार निकल पड़ी।
‘ये… ये… हुई ना बात… साला सही मर्द है… निकला ना ढेर सारा…’
‘आह… उफ़्फ़्फ़्फ़्… तेरी तो… मर गया तेरी मां की चूत… एह्ह्ह्ह्ह्ह’
‘पूरा निकाल दे… ला मैं निचोड़ दूँ…’ मैंने उसके लण्ड को गाय का दूध निकालने की तरह दुह कर उसके वीर्य की एक एक बूंद बाहर निकाल दी। बाहर का वातावरण शान्त हो चुका था। तेज हवाएँ बादल को उड़ा कर ले गई थी। अब शान्त और मधुर हवा चल रही थी।
‘अरे कहाँ चली जाती है बहू… कितनी देर से आवाज लगा रही हूँ !’
‘अरे नहा कर आ रही हूँ माता जी…’ हड़बड़ाहट में जल्दी से पानी डाल कर अपने बदन पर एक बड़ा सा तौलिया लपेट कर नीचे आ गई।
मेरी सास ने मुझे आँखें फ़ाड़ कर ऊपर से नीचे तक शक की निगाहों से देखा और बड़बड़ाने लगी,’जरा देखो तो इसे, जवानी तो देखो इसी मुई पर आई हुई है?’
‘जब देखो तब बड़बड़ाती रहती हो, बोलो क्या काम है, यूँ तो होता नहीं कि चुपचाप बिस्तर पर पड़ी रहो, बस जरा जरा सी बात पर…’
सास बहू की रोज रोज वाली खिच-खिच आरम्भ हो चुकी थी… पर मेरा ध्यान तो मोनू पर था। हाय, क्या भरा पूरा मुस्टण्डा था, साले का लण्ड खाने का मजा आ गया। जवानी तो उस पर टूट कर आई थी।
भरी वर्षा में उसकी चुदाई मुझे आज तक याद आती है। काश आज पचास की उमर में भी ऐसा ही कोई हरा भरा जवान आ कर मुझे मस्त चोद डाले… मेरे मन की आग बुझा दे…
U r voicea is eaxceallrnt. Pload more likeabovea..use te word chutad maximum number of times
Thank you for using chutad maximum number of times..similar stories pls
Muja bulla Lana jab time mile
🔥